Monday, February 22, 2010

अगर खुदा कहूँ तो थोड़ा लगता है
आगर जान से प्यारा कहूँ तो पुरानहूँ तो कम लगता है
ज़मीन से बिशाल कहूँ तो छोटा लगता है
अर प्यार की सच्ची मूरत कहूँ तो निर्जीव लगता है
अगर कहूँ की हर जगह नजर आते हो-
तो नजारे कम लगते हैं
आगर कहूँ कि मेरी ज़िन्दगी तुम्हारी अमानत है
तो अजीव लगता है
कुछ भी कहता हूँ तो शब्द कम पड़ जाते है
मैं हर बार हार जाता हूँ
और फिर हार कर चुप हो जाता हूँ
इसलिये अब मैं कुछ नही कहता
सिर्फ एक वाक्य में जन्मदाता “माँ-पिता” कहता हूँ ।।

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