अगर खुदा कहूँ तो थोड़ा लगता है
आगर जान से प्यारा कहूँ तो पुरानहूँ तो कम लगता है
ज़मीन से बिशाल कहूँ तो छोटा लगता है
अर प्यार की सच्ची मूरत कहूँ तो निर्जीव लगता है
अगर कहूँ की हर जगह नजर आते हो-
तो नजारे कम लगते हैं
आगर कहूँ कि मेरी ज़िन्दगी तुम्हारी अमानत है
तो अजीव लगता है
कुछ भी कहता हूँ तो शब्द कम पड़ जाते है
मैं हर बार हार जाता हूँ
और फिर हार कर चुप हो जाता हूँ
इसलिये अब मैं कुछ नही कहता
सिर्फ एक वाक्य में जन्मदाता “माँ-पिता” कहता हूँ ।।
Monday, February 22, 2010
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