Monday, February 22, 2010

नशे में तुम भी हो , नशे में मैं भी हूं।
फर्क इतना है , नशे- नशे में फ़र्क है।।
तुम पीकर नशे में हो,
मैं पिलाकर नशे में हूँ
तुम बेहोशी के नशे में हो,
मैं होस के नसे में हूँ
आजकल ज़िन्दगी बहुत कठिन है
आज यहाँ
कल वहाँ
परसों कहाँ
पता नहीं
बस इतना पता होता है कि कल कहीं जाना है
सफर कैसे होगा ?
यह भी पता नहीं रहता
पैदल जाना है?
बस से जाना है?
रेल से जाना है?
या फिर हवाईजहाज से?
लेकिन इतना तो पता है
कि अगर सफर लम्बा है जो पैदल तो नहीं ही जाना होगा
क्योंकि कई हाथ मेरी मदद के लिये खड़े हैं
कभी-कभी कुछ लोग बोलते हैं कि बहुत ऊर्जावान हो
और अक्सर चलते रहते हो
तब मै सामने वाले के हिसाब से
कभी जवाब देता हूँ
और कभी चुप रह जाता हूँ
जिनको जवाब देता हूँ
उनसे कहता हूँ कि
वक्त सिर्फ इसको याद रखता है
और साथ लेकर चलता है
जो अपनी किसी सफलता को
आखिरी पड़ाव नही मानता और
उसे ज़िन्दगी का पूर्ण विराम नही मानता
सिर्फ एक छोटा सा अल्पविराम मानकर
अपने पसीने रोकने के लिये रुकता है
और कुछ देर बाद फिर चल देता है
क्योंकि थके हुये का वक्त कभी साथ नहीं देता
उसके दुनिया में होने पर भी वक्त पर कोई प्रभाव नही पड़ता
क्योंकि अगर वक्त थके हुये पर रहम करेगा तो
उसका क्या होगा
जो थकने के बावजूद भी निरन्तर चल रहा है
इसबात पर बिल्कुल परवाह किये बगैर हम
वक्त को कोसते रहते हैं
यही हमारी हार है
और यही हमारी जीत है
जो सिर्फ समझ पर निर्भर करती है।

आजकल ज़िन्दगी बहुत कठिन है
आज यहाँ
कल वहाँ
परसों कहाँ
पता नहीं
बस इतना पता होता है कि कल कहीं जाना है
सफर कैसे होगा ?
यह भी पता नहीं रहता
पैदल जाना है?
बस से जाना है?
रेल से जाना है?
या फिर हवाईजहाज से?
लेकिन इतना तो पता है
कि अगर सफर लम्बा है जो पैदल तो नहीं ही जाना होगा
क्योंकि कई हाथ मेरी मदद के लिये खड़े हैं
कभी-कभी कुछ लोग बोलते हैं कि बहुत ऊर्जावान हो
और अक्सर चलते रहते हो
तब मै सामने वाले के हिसाब से
कभी जवाब देता हूँ
और कभी चुप रह जाता हूँ
जिनको जवाब देता हूँ
उनसे कहता हूँ कि
वक्त सिर्फ इसको याद रखता है
और साथ लेकर चलता है
जो अपनी किसी सफलता को
आखिरी पड़ाव नही मानता और
उसे ज़िन्दगी का पूर्ण विराम नही मानता
सिर्फ एक छोटा सा अल्पविराम मानकर
अपने पसीने रोकने के लिये रुकता है
और कुछ देर बाद फिर चल देता है
क्योंकि थके हुये का वक्त कभी साथ नहीं देता
उसके दुनिया में होने पर भी वक्त पर कोई प्रभाव नही पड़ता
क्योंकि अगर वक्त थके हुये पर रहम करेगा तो
उसका क्या होगा
जो थकने के बावजूद भी निरन्तर चल रहा है
इसबात पर बिल्कुल परवाह किये बगैर हम
वक्त को कोसते रहते हैं
यही हमारी हार है
और यही हमारी जीत है
जो सिर्फ समझ पर निर्भर करती है।
अगर खुदा कहूँ तो थोड़ा लगता है
आगर जान से प्यारा कहूँ तो पुरानहूँ तो कम लगता है
ज़मीन से बिशाल कहूँ तो छोटा लगता है
अर प्यार की सच्ची मूरत कहूँ तो निर्जीव लगता है
अगर कहूँ की हर जगह नजर आते हो-
तो नजारे कम लगते हैं
आगर कहूँ कि मेरी ज़िन्दगी तुम्हारी अमानत है
तो अजीव लगता है
कुछ भी कहता हूँ तो शब्द कम पड़ जाते है
मैं हर बार हार जाता हूँ
और फिर हार कर चुप हो जाता हूँ
इसलिये अब मैं कुछ नही कहता
सिर्फ एक वाक्य में जन्मदाता “माँ-पिता” कहता हूँ ।।

Thursday, February 18, 2010

देखते ही देखते ड़्रामा होगया और देखने वालों की कतार में खड़ा होकर मै ड़्रमा देखता रहा। एक्चुअली पहले पता नहीं था कि ड्रामा करने वाला कौन है और देखने वाला कौन है। मगर बाद में यह तो समझ में आ ही गया कि इसके बीच की कहानी क्या है और इसका मुख्य पात्र कौन है। यहाँ पर मैं शीर्षक नहीं बताऊँगा क्योंकि आजपल लोगों ने ट्रेन्ड़ बना लिया है कि किसी बात को पूरा नहीं बताते सिर्फ उसका शीर्षक बताते हैं इसलिये आत मेंरे भी दिल में एक कुलबुलाहट हुई और मैंने सोचा कि मैं सारी कहनी खोल के रख दूँगा सिर्फ शीर्षक बताना भूवल जाऊँगा और देखता हूँ कि लोग शीर्षक समझते हैं या फिर टिप्णी समझते हैं। आज यह बात इसलिये सामने आ रही है कि यहाँएक ड्रामा हुआ और उसमे भी वह ड्रामा जिसको देखकर देखने वालों को मजा नहीं आया क्योकि यह ड्रामा सिर्फ अपने लिये बनाया गया था। इस ड्रामें को देखने वाला हर दर्षक दंग रहगया और हर कोई पूछ रहा था कि इस फिल्म का हीरो कहाँ गया जो हर रोल को सही तरीके से प्ले करता था लेकिन जो कलाकार का मुखिया था उसका सिर्फ यही मक्सद थ कि वह जिसे दिखाना चाहता है जनता सिर्फ उसी को और उसी के नजरिये से देखे। मगर आज की जनता इतना कहाँ मानती है और कैसे स्वीकार करती है क्योकि आज जनता भी वही देखती है जो वह देखना चापती है । उसके बाद एक दौर और चला। जहाँ देखने वालों पर दबाव ड़ाला गया उसी घिसे-पिटे ड्रामा को देखनें के लिये मगर लोगों को बर्दास्त नहीं हुआ और सबने मिलकर उस आर्थ हीन ड्रामा को बहिस्कृत कर दिया। 18/02/2010

Sunday, February 14, 2010

सिर झुकाने का मतलब सिर्फ ड़रना नहीं सम्मान भी करना होता है।
इसलिए हम सब से सिर झुका कर मिला करते हैं
मगर लोग कुछ और कहा करते हैं
और हम उनका सुना भी करते हैं
लेकिन किसी नें कहा था
सुनों सबकी-करो अपने मन की
और हम अपने मन का ही करते हैं
इसलिये नहीं की किसी नें कहा था
बल्कि इसलिये कि यह हमें अच्छा लगता है
तेरे बिना सुबह न देखूँ
तेरे बिना न शाम हो
ऐ माँ रखले आँचल में
वही मेंरा आभिमान हो

Friday, February 12, 2010

हमनें दुनिया को बहुत करीब से देखा है

हमनें दुनिया को बहुत करीब से देखा है
एक चेहरे में दो-दो चेहरे देखा है
लोग जीते हैं दौलत के लिये,
लोग मरते हैं दौलत के लिये,
जिस्म सरे आम यहाँ हमने बिकते देखा है
हमनें दुनिया को.................
बात करना तो गुनाह होता है दुनिया में
चुप रहना भी गुनाह होता है दुनिया में
इसलिये हमने यहाँ मौन रहना सीखा है
हमने दुनिया को................
खिड़कियाँ खोल के रहना मुस्किल,
खिड़कियाँ बन्द भी रखना मुस्किल,
इसलिये हमनें महलों रहना छोड़ा है
हमने दुनिया को................
हवा है बदचल किसी ओर रुख बनालेगी
चाह लेगी तो बेपर्दा करके दम लेगी
इस लिये हमनें हवा के साथ उड़ना है
हमना दुनिया को ...............
हमनें दुनिया को बहुत करीब से देखा है।
एक चेहरे में दो-दो चेहरे देखा है ।।