Thursday, February 18, 2010

देखते ही देखते ड़्रामा होगया और देखने वालों की कतार में खड़ा होकर मै ड़्रमा देखता रहा। एक्चुअली पहले पता नहीं था कि ड्रामा करने वाला कौन है और देखने वाला कौन है। मगर बाद में यह तो समझ में आ ही गया कि इसके बीच की कहानी क्या है और इसका मुख्य पात्र कौन है। यहाँ पर मैं शीर्षक नहीं बताऊँगा क्योंकि आजपल लोगों ने ट्रेन्ड़ बना लिया है कि किसी बात को पूरा नहीं बताते सिर्फ उसका शीर्षक बताते हैं इसलिये आत मेंरे भी दिल में एक कुलबुलाहट हुई और मैंने सोचा कि मैं सारी कहनी खोल के रख दूँगा सिर्फ शीर्षक बताना भूवल जाऊँगा और देखता हूँ कि लोग शीर्षक समझते हैं या फिर टिप्णी समझते हैं। आज यह बात इसलिये सामने आ रही है कि यहाँएक ड्रामा हुआ और उसमे भी वह ड्रामा जिसको देखकर देखने वालों को मजा नहीं आया क्योकि यह ड्रामा सिर्फ अपने लिये बनाया गया था। इस ड्रामें को देखने वाला हर दर्षक दंग रहगया और हर कोई पूछ रहा था कि इस फिल्म का हीरो कहाँ गया जो हर रोल को सही तरीके से प्ले करता था लेकिन जो कलाकार का मुखिया था उसका सिर्फ यही मक्सद थ कि वह जिसे दिखाना चाहता है जनता सिर्फ उसी को और उसी के नजरिये से देखे। मगर आज की जनता इतना कहाँ मानती है और कैसे स्वीकार करती है क्योकि आज जनता भी वही देखती है जो वह देखना चापती है । उसके बाद एक दौर और चला। जहाँ देखने वालों पर दबाव ड़ाला गया उसी घिसे-पिटे ड्रामा को देखनें के लिये मगर लोगों को बर्दास्त नहीं हुआ और सबने मिलकर उस आर्थ हीन ड्रामा को बहिस्कृत कर दिया। 18/02/2010

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